Wednesday, 22 April 2015
जानकीपुल: मीरांबाई की छवि और मीरां का जीवन
जानकीपुल: मीरांबाई की छवि और मीरां का जीवन: बड़ी चर्चा सुनी थी माधव हाड़ा की किताब ‘पंचरंग चोला पहर सखी री’ की. किसी ने लिखा कि मीरांबाई के जीवन पर इतनी अच्छी किताब अभी तक आई नहीं थ...
Monday, 6 April 2015
इंडिया टुडे में पचरंग चोला पहर सखी री पर डॉ. पल्लव
अपने समाज की तरह हिंदी साहित्य भी प्रचलित धारणाओं को सच
मानकर उन पर निर्भर
रहता है. अगर ऐसी धारणाएं मध्यकाल के साहित्य या साहित्यकार के संबंध
में हों तो उन्हें बदलना या उन पर बात करना और मुश्किल होता है. मीरा के
संबंध में भी ऐसा ही है. आचार्य परशुराम चतुर्वेदी ने जब उनकी पदावली तैयार
की तो उनसे जुड़े प्रवादों को भी चिन्हित किया जिन्हें आगे कई बार सच मान
लिया गया. प्रो. माधव हाड़ा अपनी किताब पचरंग चोला पहर सखी री के पहले ही
पन्ने पर लिखते हैं कि मीरा की जिंदगी के प्रेम,
रोमांस और रहस्य के
तत्वों ने उपनिवेशकालीन यूरोपीय इतिहासकारों का ध्यान भी खींचा
और उन्होंने उन
तत्वों को मनचाहा विस्तार दिया. उन इतिहासकारों की स्वार्थगत व्याख्या को
खोलते हुए हाड़ा मीरा की जिंदगी से जुड़े प्रवादों,
जनश्रुतियों और
ऐतिहासिक सचाइयों का विवेचन करते हैं. इतिहास में उल्लेख नहीं
होने की वजह से
जनश्रुतियां मीरा को जानने-समझने के आधार हैं. विडंबना कि इन जनश्रुतियों को अभी ठीक से पढ़ा नहीं
गया है. पिछली सदी के पूर्वार्ध में
यूरोपीय आधुनिकता के अनुसरण की हड़बड़ी में हमने ज्यादातर
जनश्रुतियों को तर्क
की कसौटी पर कसकर खारिज कर दिया. हाड़ा इन जनश्रुतियों और ऐतिहासिक स्रोतों
के विवेकपूर्ण इस्तेमाल से मीरा के जीवन के कुछ अंधकारपूर्ण हिस्सों की पुनर्रचना करते हैं.
वे बताते हैं कि मीरा पारंपरिक अर्थों में संत भन्न्त या भावुकतापूर्ण ईश्वरभक्ति में लीन युवती नहीं थीं. मीरा की कविता में आए सघन दु:ख का कारण पितृसत्तात्मक अन्याय नहीं था बल्कि वह खास तरह की घटनाओं और ऐतिहासिक परिस्थितियों की वजह से था. इसी तरह मीरा के समय और समाज को ठहरा मानने के तर्कों को खारिज करते हुए हाड़ा बताते हैं कि मीरा का समाज आदर्श समाज तो नहीं था, पर यह पर्याप्त गतिशील और द्वंद्वात्मक समाज था. तमाम अवरोधों के बाद भी उसमें कुछ हद तक मीरा होने की गुंजाइश थी. किताब के दो अध्यायों में मीरा की गढ़ी गई छवि और मीरा के कैननाइजेशन पर हाड़ा ने विस्तार से लिखा है. वे अपने शोध और निष्कर्षों में पुरातनपंथी और अतीताग्रही भी नहीं दिखाई पड़ते बल्कि लोक जीवन के प्रति उनका अनुराग इस अध्ययन को प्रभावी और पठनीय बनाता है.
मीरां का जीवन और समाज
पचरंग चोला पहर सखी री
लेखक: माधव हाड़ा
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
मूल्य: 375 रु.
वे बताते हैं कि मीरा पारंपरिक अर्थों में संत भन्न्त या भावुकतापूर्ण ईश्वरभक्ति में लीन युवती नहीं थीं. मीरा की कविता में आए सघन दु:ख का कारण पितृसत्तात्मक अन्याय नहीं था बल्कि वह खास तरह की घटनाओं और ऐतिहासिक परिस्थितियों की वजह से था. इसी तरह मीरा के समय और समाज को ठहरा मानने के तर्कों को खारिज करते हुए हाड़ा बताते हैं कि मीरा का समाज आदर्श समाज तो नहीं था, पर यह पर्याप्त गतिशील और द्वंद्वात्मक समाज था. तमाम अवरोधों के बाद भी उसमें कुछ हद तक मीरा होने की गुंजाइश थी. किताब के दो अध्यायों में मीरा की गढ़ी गई छवि और मीरा के कैननाइजेशन पर हाड़ा ने विस्तार से लिखा है. वे अपने शोध और निष्कर्षों में पुरातनपंथी और अतीताग्रही भी नहीं दिखाई पड़ते बल्कि लोक जीवन के प्रति उनका अनुराग इस अध्ययन को प्रभावी और पठनीय बनाता है.
मीरां का जीवन और समाज
पचरंग चोला पहर सखी री
लेखक: माधव हाड़ा
प्रकाशक: वाणी प्रकाशन
मूल्य: 375 रु.
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